US: विकास यादव को कस्टडी में लेना चाहता है अमेरिका, भारत बोला- वह हमारा कर्मचारी नहीं

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वॉशिंगटन । अमेरिकी अदालत में आरोप लगाए गए हैं कि रॉ के पूर्व अधिकारी विकास यादव खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने में शामिल थे। इस बीच उनके परिवार का बयाम भी आया है। परिजनों का कहना है कि अमेरिका के आरोप गलत हैं। वह तो देश के लिए काम करते हैं। हमें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि वह जासूस हैं। अमेरिका के न्याय विभाग ने आरोप लगाया है कि विकास यादव ने गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के लिए साजिश रची थी और निखिल गुप्ता को इसके लिए हायर किया था। अमेरिका का आरोप है कि विकास यादव रॉ के एजेंट थे।

विकास यादव अब सरकारी कर्मचारी नहीं: भारत

वहीं भारत का कहना है कि विकास यादव अब सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। भारत सरकार ने यह भी नहीं बताया कि वह फिलहाल क्या कर रहे हैं और खुफिया अधिकारी रहे हैं या नहीं। विकास के परिवार का कहना है कि उनके बारे में हमें यह जानकारी नहीं है कि उन्होंने भारतीय जासूस के तौर पर काम किया या नहीं। उनके एक चचेरे भाई ने कहा कि विकास यादव ने 2009 में सीआरपीएफ जॉइन की थी और अब भी उसके ही साथ हैं। हमें यही जानकारी है। विकास यादव पर अमेरिका की ओर से आरोप लगाए जाने का मामला भविष्य में और तूल पकड़ सकता है।

अमेरिका विकास यादव की कस्टडी मिलना आसान नहीं होगा

चर्चा है कि अमेरिका ने विकास यादव के बारे में भारत के कौंसुलर ऑफिस से जानकारी मांगी है। यही नहीं खबर है कि अमेरिका की ओर से विकास यादव के प्रत्यर्पण की मांग भी हो सकती है। हालांकि इसके लिए जरूरी होगा कि अमेरिका की कोई अदालत ने विकास यादव के संबंध में आदेश दे। फिर भी अमेरिका को विकास यादव की कस्टडी मिलना आसान नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि विकास यादव खुद भारत में ही एक लीगल मामले में फंसे हुए हैं। वह केस जब तक नहीं निपटता है और उस मामले यदि सजा मिलती है तो वह पूरी नहीं होती, तब तक अमेरिका विकास यादव का प्रत्यर्पण हासिल नहीं कर सकता।

अब तक प्रत्यर्पण के 61 मामलों में कोई पहल नही की

अमेरिका और भारत के बीच जो प्रत्यर्पण संधि है, उसके तहत किसी भी ऐसी शख्सियत को सौंपना जरूरी नहीं है, जो राजनीतिक व्यक्ति हो या राजनीतिक कारणों से रह रहा है। हालांकि हत्या, विमान हाईजैकिंग, आतंकवाद जैसे मामलों में आरोपियों को सौंपने पर सहमति है। फिर भी अब तक प्रत्यर्पण के 61 मामलों में अमेरिका ने भारत की अर्जी पर कोई पहल नहीं की है। ऐसे में भारत भी यदि अमेरिका की इस अर्जी को खारिज कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। इसके अलावा यहां खुद एक मामले का सामना करने के चलते विकास के प्रत्यर्पण में कानूनी मुश्किलें भी हैं।

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