बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों की अब भारत से आस, 50 सालों से नागरिकता के लिए संघर्ष
नई दिल्ली । दशकों से भारत में रह रहे बांग्लादेश से आए 50 हजार शरणार्थी हिंदुओं ने भारत से नागरिकता देने की अपील की है। बांग्लादेश से आकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में बसे हिंदू शरणार्थियों की आबादी लगभग 50 हजार हो गई है। नक्सल प्रभावित इलाके में इन लोगों के लिए गुजारा करना बड़ी चुनौती रही है। ये लोग सालों से सड़क, बिजली, शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहे हैं। यहां लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और जमीन का मालिकाना हक, बंगाली माध्यम में शिक्षा का अधिकार, जाति प्रमाण पत्र, आरक्षण और नागरिकता के अधिकार हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गौरतलब है कि सीएए लागू होने के बाद इन लोगों के लिए नागरिकता हासिल करना और भी मुश्किल हो गया है।
कोई भी अपना देश नहीं छोड़ना चाहता
निखिल भारत बंगाली शरणार्थी समन्वय समिति पिछले कई सालों से शरणार्थी बंगाली हिंदुओं के लिए लड़ रही है और सरकार से न्याय की गुहार लगा रही है। समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुबोध बिस्वास ने कहा, “कोई भी अपना देश नहीं छोड़ना चाहता। बांग्लादेश के हिंदू भारत को अपनी मां मानते हैं यही वजह है कि वे महाराष्ट्र आए। अब उन्हें आश्चर्य है कि उनके साथ भेदभाव क्यों हो रहा है। हमारे पास जमीन का मालिकाना हक, जाति प्रमाण पत्र या नागरिकता नहीं है। हम बहुत संघर्ष कर रहे हैं। हम सीएए की शर्तों को पूरा नहीं कर सकते। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भरोसा करते हैं लेकिन सीएए का फैसला गलत था”
‘करीब 20 लाख लोग आए थे भारत’
वहीं एक शरणार्थी बिधान बेपारी ने कहा, “हम 1964 में यहां आए थे। बांग्लादेश हमारे लिए सुरक्षित नहीं था। करीब 20 लाख लोग आए। कुछ लोग 1964 से पहले आए। वे अलग-अलग राज्यों में रहने लगे। कई लोग पश्चिम बंगाल में भी बस गए। सरकार ने 1974 तक कई लोगों को बसाया। उस समय हालात बहुत खराब थे। कुछ भी नहीं उगाया जा सकता था और खाने के लिए कुछ भी नहीं था। यह इलाका जंगली जानवरों से भरा हुआ था। धीरे-धीरे हमने जंगल साफ किए और चीजें उगाना शुरू किया। पर अब हम जूझ रहे हैं। हममें से 80 फीसदी लोगों के पास नागरिकता नहीं है। देश को 1947 में आजादी मिली, लेकिन हमें नहीं लगता कि हमें कोई आजादी मिली है। हमें नागरिकता दी जानी चाहिए। सरकार ने हमें जो जमीन दी है, उसे कानूनी तौर पर हमें हस्तांतरित किया जाना चाहिए।”
लोग जाति प्रमाण पत्र देने का कर रहे हैं अनुरोध
एक अन्य शरणार्थी महारानी शुकेन ने कहा, “मैं एक साल की थी जब मेरे पिता हमें बांग्लादेश में हिंसा से बचने के लिए भारत लाए थे। जब हम यहां आए तो हमें खाना नहीं मिला। हमें जमीन और जानवर दिए गए लेकिन हम गरीब ही रहे। हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है। हमें दी गई जमीन समय के साथ बंटती गई। हम सरकार से जाति प्रमाण पत्र देने का अनुरोध कर रहे हैं।”