केंद्र ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क 20% बढ़ाया, तो क्‍या त्‍योहारों पर लोगों के जेबों पर बढ़ेगा बोझ?

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मुंबई। केंद्र सरकार ने कच्चे और रिफाइंड खाद्य तेल पर लगने वाले आयात शुल्क को 20 प्रतिशत बढ़ा दिया है। पाम ऑयल, सोया ऑयल और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क बढ़ने से त्योहारों से पहले इनकी कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका बढ़ गई है। इसका असर त्योहारी सीजन के दौरान सीधे आम लोगों के जायके पर पड़ेगा।

अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ का कहना है कि इस फैसले से किसानों को राहत मिलेगी और उनकी कमाई भी बढ़ेगी, लेकिन दूसरी ओर आम जनता पर इसका बोझ बढ़ेगा। इससे पहले भी सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए सोयाबीन की खरीदारी समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्देश दिया था। अब 20 प्रतिशत तक आयात शुल्क बढ़ाने की कोई आवश्यकता यहां नजर नहीं आती है। इसके असर से खाद्य तेलों के भाव 15 से 22 प्रतिशत प्रति किलो तक बढ़ जाएंगे। महासंघ के अनुसार इस फैसले से छोटे किसान तो नहीं बल्कि स्टॉक करने वाले बड़े व्यापारियों को अधिक फायदा होगा। पिछले एक से दो हफ्ते पहले खाद्य तेलों के दामों 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि पहले ही देखी जा चुकी है। जिसमें रिफाइंड ऑयल के दाम 10 प्रतिशत और सरसों का तेल 12 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं।

अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर बताते हैं कि इस साल देश भर में अच्छे मॉनसून की वजह से चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तेलगांना में सोयाबीन की अच्छी फसल होने की उम्मीद है। वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक देश अर्जेंटीना और ब्राजील तथा अमेरिका में भी फसल अच्छी आने की संभावना है। रूस और यूक्रेन द्धारा सूरजमुखी के तेल बेचने की होड़ के चलते खाद्य तेलों के दाम नीचे आ गए थे। इस वजह से सोयाबीन के दाम भी समर्थन मूल्य के नीचे चले गए थे। वे कहते हैं कि महाराष्ट्र में वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव और अन्य राज्यों के किसान संगठनों द्वारा सरकार पर बनाए गए दबाव के कारण कुछ दिन पहले ही इन चार राज्यों में समर्थन मूल्य पर सोयाबीन खीदने के आदेश सरकार ने जारी किय थे।

ग्रेन एसोसिएशन के सदस्य और खाद्य तेल व्यापारी अतुल शाह बताते हैं कि गत दो महीनों से खाद्य तेलों का भारत का आयात कम रहा है। आगामी त्योहारों को देखते हुए मांग को पूरा करने के लिए भी व्यापारियों ने स्टॉक कर लिया है। वहीं दूसरी ओर सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी गई सरसों की बिक्री का आदेश दिया गया, तब पता चला कि सरसों की गुणवत्ता एवं उपलब्धता दोनों की मात्रा में अंतर पाया गया। जिसकी वजह से खाद्य तेलों के दामों पिछले कुछ सप्ताह में 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं और अब 20 प्रतिशत की ड्यूटी की वृद्धि महंगाई को बढ़ाएगी।

मुंबई के होलसेल व्यापारी गणेश गणत्रा बताते हैं कि सरकार के इस फैसले से किसानों को राहत मिलेगी, हम इसके विरोध में नहीं है, लेकिन वे बड़े व्यापारी या स्टॉकिस्ट जिन्होंने पहले कम ड्यूटी देकर खाद्य तेल खरीदा है अब वे उसे अधिक मुनाफा कमाते हुए बाजारों में बेंचेगे। इससे उनकी जेबें तो भरेगी, लेकिन आम लोगों के लिए बड़ी परेशानी होगी। त्योहार आने वाले है, ऐसे में नमकीन, मिठाइयां और तेलों से सभी चीजें महंगी होगी। इससे लोगों पर भार बढ़ेगा। नवी मुंबई एपीएमसी उद्योग संगठन के सदस्य कीर्ती राणा कहते है कि देश में 40 प्रतिशत किसान है जिसमें केवल 5 से 6 प्रतिशत किसान ही तिलहन यानी सरसों, सोयाबीन, मूंगफली व अन्य फसलों की खेती करते है। सरकार ने यह फैसले चुनावों और कुछ किसान संगठनों के दबाव में लिया है।

सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क लगाया गया है। इसमें तीनों तेलों पर कुल आयात शुल्क 5.50 प्रतिशत से बढ़कर 27.5 प्रतिशत हो जाएगा। रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सोया तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल के आयात पर 13.75 आयात शुल्क के मुकाबले अब 35.75 प्रतिशत आयात शुल्क लगेगा । घरेलू सोयाबीन की कीमतें लगभग 4,600 रुपये (54.84 डॉलर) प्रति 100 किलोग्राम है जो राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 4,892 रुपये से कम है। घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की मांग 65 से 70 प्रतिशत है, जिसको आयात द्वारा पूरा किया जाता है।

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