Uttarakhand: मकर संक्रांति के अवसर पर कल खुलेंगे आदिबदरी मंदिर के कपाट

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  • सजाया जा रहा परिसर और बाजार

आदिबदरी मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इस अवसर पर आदिबदरी मंदिर परिसर के साथ ही नगर के सभी मंदिरों और बाजार को भव्य रूप से फूलों से सजाया गया है। बता दें कि कपाट उदघाटन की शुभ बेला पर और भगवान आदिबदरी के माघ मास के पहले श्रृंगार के दर्शन करने के लिए भारी संख्या में लोग आदिबदरी मंदिर पहुचंते है।

सुबह बृ​​ह्म मुहूर्त में  बजे खुलेंगे कपाट

मंदिर के मुख्य पुजारी चक्रधर थपलियाल के अनुसार कपाट ब्रह्ममुहूर्त में सुबह चार बजे खुलेंगे। जबकि श्रद्धालु सुबह छह बजे से दर्शन कर सकेंगे। भगवान आदिबदरी नाथ मंदिर के कपाट वर्ष में एक माह (पौष)के लिए बंद होते हैं। कपाटोद्घाटन के लिए मंदिर समूह सहित पूरे बाजार को भब्य रूप से सजाया गया है।

आदि बद्री को क्यों माना जाता है विशेष

उत्तराखंड के केदारखंड में स्थित आदिबद्री , पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह स्थान चमोली जनपद में कर्णप्रयाग-रानीखेत मोटर मार्ग पर, कर्णप्रयाग से 18 कि.मी. तथा गोपेश्वर से 57 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। दूधातोली पर्वत से निकलने वाली उत्तर नारायणगंगा के किनारे, 3800 फीट की ऊंचाई पर बसे इस तीर्थ को भगवान विष्णु की आदि तपस्थली माना गया है।

पंच बद्री तीर्थों में प्रथम स्थान

आदिबदरी, बदरीनाथ से जुड़े पांच बद्री तीर्थस्थलों में सबसे पहले आता है। इसीलिए इसे ‘आदि’ नाम दिया गया है। इस स्थल पर कुल 16 मंदिरों का समूह है, जिनमें से वर्तमान में 14 मंदिर शेष हैं। यह मंदिर समूह 85 फीट लंबाई और 42 फीट चौड़ाई के क्षेत्र में स्थित है। यहां का प्रमुख मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर है, जो 20 फीट ऊंचा है। आदिबद्री के मंदिर नागर शैली में निर्मित हैं। इनकी दीवारें कटे हुए पत्थरों से बनी हैं, और द्वार पाषाण शिलाओं से सजाए गए हैं। मंदिर के द्वारों पर देवी-देवताओं, गंधर्व-किन्नरों, कीर्तिमुख, और अन्य पौराणिक पात्रों की सुंदर मूर्तियां उकेरी गई हैं।

यहां के मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की 3 फीट ऊंची चतुर्भुजी मूर्ति है, जिसमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित हैं। इस प्रतिमा के ऊपर चांदी का छत्र और मुकुट स्थापित है। मंदिर के ठीक सामने एक छोटे मंदिर में भगवान गरुड़ की प्रतिमा स्थित है।

मान्यता है कि, इन मंदिरों का निर्माण गुप्तकाल के दौरान विक्रम की सातवीं शताब्दी में हुआ। मंदिरों के शिलालेख और उत्कीर्ण मूर्तियां दक्षिण भारतीय शिल्प शैली का उदाहरण हैं। यह आश्चर्य का विषय है कि भारी-भरकम पत्थरों से बनी इन मूर्तियों को इस दुर्गम क्षेत्र में कैसे लाया गया होगा।

आदिबद्री के कपाट

 

 

 

आदिबद्री के कपाट हर वर्ष पौष संक्रांति से मकर संक्रांति तक बंद रहते हैं। यहां मकर संक्रांति और वैशाख के पांचवे तथा ज्येष्ठ के प्रथम सोमवार को ‘नौढ़ा मेला’ आयोजित होता है, जिसे ‘लठमार मेला’ भी कहा जाता है।

आदिबद्री एक ऐसा तीर्थस्थल है जो अपने धार्मिक महत्व, अद्भुत वास्तुकला और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण भक्तों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है। यह स्थान भगवान विष्णु की उपासना के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है।

 

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