Jammu Kashmir Elections 2024: ‘कश्मीर के ताज’ को लेकर उलझन में सियासी दल, ऐसे समझें गणित

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  • भाजपा के लिए ये जगहें आसान नहीं!

Jammu Kashmir Elections: दस साल बाद हो रहे चुनाव में कश्मीर का दिल कहे जाने वाले लाल चौक विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। यहां देखने में सब कुछ सामान्य सा लगता है, पर है नहीं। लाल चौक (Lal Chowk) जहां एक ओर पर्यटकों से गुलजार है। वहीं यहां चप्पे चप्पे पर तैनात सुरक्षा कर्मी अतिरिक्त सतर्कता बरतने की ओर इशारा कर रहे हैं।

यहां चुनावी पोस्टर, बैनर, झंडियां दिख नहीं रहीं हैं। साथ ही मतदाता भी दिल की बात दिल में ही दबाए बैठे हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का पहला चरण सम्पन्न होने के साथ ही राजनीतिक दलों ने दूसरे चरण (JK Vidhan Sabha Election Second Phase Voting) के लिए ताकत झोंक दी है। माहौल, खौफजदा लेकिन शांत है, ऐसे में यहां की जनता किस पार्टी के नुमाइंदे को विधानसभा पहुंचाएगी, फिलहाल बता पाना संभव नहीं है।

कमल की स्वीकार्यता: आसान नहीं
ज्ञात हो कि चुनाव में लाल चौक विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए खास है। कारण ये है कि भाजपा ने कश्मीर की जिन 19 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, लालचौक भी उनमें शामिल है।

यहां नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और अपनी पार्टी के उम्मीदवारों सहित कुल दस प्रत्याशी राजनीतिक भाग्य आजमा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा प्रत्याशी के लिए यहां रैली कर चुके हैं। रैली में बाद भी लोग चुनाव को लेकर बातचीत करने से बच रहे हैं। हां कुछ प्रौढ़ जरूर अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदान से नाराज दिखाई पड़ते हैं। वे कहते हैं क इन दोनों के शासन में न केवल हड़ताल होती थीं, बल्कि गोलियां भी चलतीं थी। इसके बावजूद भाजपा को वोट देने का प्रश्न आते ही ये कहते हैं कि कमल का निशान स्वीकार करना आसान तो नहीं है। जबकि बीजेपी उम्मीदवार इंजीनियर एजाज हुसैन का कहना है कि ‘लाल चौक का एक अपना इतिहास रहा है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1990 के दशक में तिरंगा फहराया।’ ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि इसी लाल चौक विधानसभा चुनाव क्षेत्र से कमल का फूल भी खिलेगा।

कौन बिगाड़ रहा गणित?
यहां के लोगों के अनुसार मोदी की जनसभा होने से भाजपा प्रत्याशी को कुछ हद तक टक्कर में माना जा रहा है, लेकिन हकीकत में इसका खास असर पड़ता नहीं दिख रहा। कारण सभा मैनेज हो सकती है। ऐसे में आवश्यक नहीं कि वे वोट भी दें। कश्मीर में एनसी और इंजीनियर रशीद के प्रत्याशी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं यहां का खेल मुख्य रूप से निर्दलीय गणित बिगाड़ते दिख रहे हैं।

चाचा-भतीजा आमने सामने
भाजपा ने 40 वर्षीय यहां से इंजीनियर एजाज हुसैन को मैदान में उतारा है। तो वहीं एनसी के टिकट पर 50 वर्षीय शेख अहसान अहमद मैदान में हैं। जबकि पीडीपी ने 35 साल के जुहैब यूसुफ मीर को टिकट दिया है। इसके अलावा जम्मू एंड कश्मीर अपनी पार्टी से 52 वर्ष के मोहम्मद अशरफ मीर चुनावी मैदान में हैं। और ये रिश्ते में पीडीपी प्रत्याशी के चाचा हैं। यानि इस सीट से चाचा-भतीजे के बीच चुनावी जंग है।

खासी चर्चित: गांदरबल विधानसभा सीट
वहीं दूसरी ओर दस साल बाद हो रहे चुनाव में गांदरबल विधानसभा सीट की खासी चर्चा है। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला रण में है। यहां से उमर के दादा शेख अब्दुल्ला और पिता फारूक अब्दुल्ला भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार का चुनाव बेहद अलग है।

यहां पर एक युवा का कहना था कि, यहां एनसी और पीडीपी में फाइट नजर आ रही है। जबकि यहीं के एक अन्य युवा का कहना था कि, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि पीडीपी, एनसी, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) और अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है। यहां पीडीपी से बशीर अहमद मीर, अपनी पार्टी से काजी मुबिशर फारूक और डीपीएपी से कैसर सुल्तान गनी मैदान में हैं।

मुकाबला इस कारण हुआ रोचक
दरअसल इस सीट पर सबसे ज्यादा 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। ऐसे में उमर के वोट कटने का सबसे ज्यादा खतरा है। लोकसभा चुनाव 2024 में बारामूला सीट पर उमर को जेल में बंद अलगाववादी नेता इंजीनियर राशिद ने मात दी थी। ऐसे में एक बार फिर उन्हें जेल से ही चुनौती मिल रही है। यहां से जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार जेल में बंद अलगाववादी नेता सरजन अहमद वागे उर्फ मौलाना सरजन बरकती ‘फ्रीडम चाचा’ ने चुनाव लड़कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में यहां बरकती के समर्थक और उनकी बेटी सुगरा, पिता के लिए वोट मांग रहे हैं। खास बात ये भी है कि यदि बरकती सहित अन्य निर्दलीयाें ने वोट काटे तो उमर की जीत खटाई में पड़ सकती है।

उमर-गांदरबल से हार चुके हैं एक बार
आपको बता दें कि हार के डर से उमर एक अन्य सीट बडगांव से भी चुनाव लड़ रहे हैं। उमर के दो सीटों से चुनाव लड़ने का जो कारण बताय जाता हे उसके अनुसार, उमर ने प्रतिष्ठा बचाने के लिए पहले गांदरबल को ही चुना, लेकिन विरोधियों की रणनीति ने उन्हें बडगांव से भी लड़ने को मजबूर कर दिया। ज्ञात हो उमर 2002 के चुनाव में इस सीट पर हार गए थे, लेकिन 2008 में जीतकर सीएम बने थे।

मुद्दा-यूपी और असम
चुनाव में उमर उत्तरप्रदेश का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं। यहां वे कह रहे हैं कि भाजपा सरकार ने उत्तरप्रदेश में मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलाए। असम में भाजपा की हुकूमत मुसलमानों को जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों पर हमला करते हुए उमर जगह-जगह बोल रहे हैं कि इनका मकसद सीटें जीतकर भाजपा की झोली में डालना है। वे क्षेत्र से पुराने रिश्ते का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं।

ऐसे घेर रही पीडीपी
वहीं पीडीपी के नेता भी उमर अब्दुल्ला के दो जगह से चुनाव लड़ने पर निशाना साध रहे हैं। महबूबा मुफ्ती ने कई बार यहां तक कह दिया कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने तक चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर चुके, उमर अब दो-दो सीटों से लड़ रहे हैं। उनकी कथनी और करनी कभी एक जैसी नहीं रही।

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