‘एक देश एक चुनाव’ कैबिनेट मंजूरी के बाद विपक्ष का विरोध, कांग्रेस सहित 15 दलों ने नकारा
नई दिल्ली । । एक देश एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद सियासी हलकों में विरोध तेज हो गया है। कैबिनेट द्वारा हरी झंडी दिखाने के बाद कांग्रेस समेत 15 पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस ने इसे अव्यवहारिक और असंगत बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस योजना को जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास करार दिया। उन्होंने कहा, “यह सफल नहीं होगा… जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी।” हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते समय खड़गे ने यह बयान दिया।
ये फैसला देश की संघीय ढांचे पर भी असर पड़ सकता
वहीं विपक्षी दलों का मानना है कि एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराना न केवल व्यावहारिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि इससे देश की संघीय ढांचे पर भी असर पड़ सकता है। उनका तर्क है कि अलग-अलग राज्यों के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भिन्नता है और इन सभी को एक साथ चुनावों के जरिए संभालना कठिन होगा। खरगे ने जोर देकर कहा, “यह योजना केवल सरकार द्वारा अपनी नीतियों से जनता का ध्यान हटाने की एक चाल है।” कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने यह भी आरोप लगाया कि इस तरह की योजनाओं को लागू करने से लोकतंत्र को खतरा हो सकता है और राज्यों के स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा। केंद्र सरकार की इस योजना का विरोध करते हुए विपक्ष ने साफ कर दिया है कि वह इसे संसद में उठाएंगे और देशव्यापी स्तर पर इसका विरोध करेंगे।
विधि मंत्रालय के 100 दिवसीय एजेंडे का हिस्सा
एक देश एक चुनाव पर गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखी गई। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई रिपोर्ट को मंत्रिमंडल के समक्ष रखना विधि मंत्रालय के 100 दिवसीय एजेंडे का हिस्सा था।
विचार के लिए ‘कार्यान्वयन समूह’ का गठन किया गया
उच्च स्तरीय समिति ने पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की थी। समिति के द्वारा दी गई सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ गठित करने का भी प्रस्ताव रखा था। समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की।
समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की
मौजूदा वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं। समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित करने की जरूरत होगी।
2029 तक सभी देश में सभी चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश
एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है।