जागो सरकार जागो : फर्स्ट एड किट लगवाओ और पहाड़ी रूट की खटारा बसों को चलाने से बाज आओ
- बीच रास्तों में खराब हो रहीं बसें, सरकार नहीं कर रही अपने वादे पर अमल
- कुछ का फर्स्ट एड बॉक्स टूटा हुआ है तो कुछ केवल दिखावे के लिए लगे बॉक्स में जम रही है धूल
देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में चलने वाली बसों में आम नागरिक की जान से खिलवाड़ जारी है। लेकिन जब कभी शिकायतें सामने आती हैं तो बस वादों का पुलिंदा पकड़ा दिया जाता है। पुराने तारों की तरह सड़ गल चुकी इस व्यवस्था को लेकर हर किसी में गुस्सा भरा हुआ है। दरअसल यूं तो हर बस में फर्स्ट एड किट का होना आवश्यक होता है उस पर भी पहाड़ों पर जाने वाली बसों में तो फर्स्ट एड किट का होना अत्यंत आवश्यक है ही। कारण ये है कि पहाड़ों में सफर के दौरान कई बार प्राथमिक उपचार की जरूरत पड़ जाती है, लेकिन इसके बावजूद सबसे निंदनीय बात ये है कि मैदानी क्षेत्रों में चलने वाली बसों की तरह ही पर्वतीय डिपो की बसों से भी फर्स्ट एड किट नदारद है। इसके अलावा जर्जर बसें भी यात्रियों के लिए अत्यंत खौफनाक बनती जा रही हैं।
इस संबंध में पिछले दिनों जब यूके समाचार की ओर से अल्मोड़ा जाने वाली बस की कमी के संबंध में पता किया गया तो सबसे पहली बात तो सामने ये आई कि दिन में केवल एक बस ही देहरादून से अल्मोड़ा जाती है। भले ही कुछ समय के लिए एक विशेष बस भी संचालित की गई भी लेकिन अब वो भी बंद है। वहीं जर्जर हालात में यह बस कई तरह से इसमें सवार होने वाली सवारियों के साथ जान का खिलवाड़ करती है।
सूत्रों के अनुसार ये जानकारी सामने आई कि सरकार लंबे समय से इस रूठ पर नई बसें जल्द लाने का वादा तो कर रहीं है। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। ऐसे में कई बार रात के सफर के दौरान भी बसें खराब हो जाती हैं। लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सरकार कहती है कि जल्द ही सफेद वाली बस ला रहे हैं, लेकिन करीब दो साल से जारी इन वादों पर अब तक अमल नहीं किया जा सका है। ऐसे में जब तब चलती बसों में कभी भी रास्ते में सेक्शन पाइप खराब हो जाता है तो कभी कुछ और खराब हो जाता है, जिसके कारण बस अपने स्थान तक पहुंचने के मामले में 2 से 6 घंटे तो भी लेट हो ही जाती है, लेकिन सवाल ये है कि यदि ऐसी अनियमित्ताओं के चलते यदि कभी कोई गंभीर हादसा हो जाए तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, क्या सरकार इसकी जिम्मेदारी लेते हुए ऐसे किसी भी हादसे में अपना सब कुछ त्याग करने का वचन दे सकती है। यदि नहीं तो वह इससे बचने का पूरा इंतजाम क्यों नहीं करती। वहीं तमाम शिकायतों के बावजूद बसों की जर्जर हालत की ओर ध्यान नहीं दिए जाने के चलते सूत्रों के अनुसार अब तो इन बसों में जाने वाले ड्राइवर और कंडक्टर भी काफी हद तक भय में रहते हैं।
इस संबंध में जब अल्मोड़ा जाने वाले एक यात्री देवेंद्र तिवारी से बात की गई तो उनका कहना था कि मैं कई बार देहरादून अल्मोड़ा अप डाउन करता हूं। ऐसा कई बार हो गया कि कभी अल्मोड़ा से आते वक्त बस का कोई पाइप फट जाता है, तो कभी कोई दूसरी परेशानी आ जाती है। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन सरकार है कि इस ओर ध्यान ही नहीं देती है। यहां तक की मैं कई बार ड्रायवर और कंडक्टर से भी इस बात को लेकर बहस कर चुका हूं, लेकिन वे साफ तौर पर कहते हैं कि साहब हम तमाम बार कह चुके हैं, लेकिन कोई सुनता ही नहीं है। कभी कभी तो मन करता है कि रास्ते में खराब हुई बस को हम छोड़कर भाग जाएं। लेकिन सवारियों की चिंता हमें ये करने नहीं देती। और सरकार की ओर से केवल वादा ही मिलता है कि जल्द सफेद वाली नई बसे ला रहे हैं। ये वादा सुनते सुनते हमें भी 2 साल बीत चुके हैं। लेकिन अब तक तो ये आईं ही नहीं।
वहीं एक अन्य यात्री बीपी पंत बताते हैं कि ये हर सरकार यही करती है केवल वादे, उनके अनुसार उनके साथ कई बार ऐसा हो गया कि रास्ते में बस खराब हो गई, लेकिन फिर उसको ड्राइवर व कंडेक्टर ही जैसे तैसे मिलकर ठीक करने के बाद मंजिल तक पहुंचाते हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में सरकार को इसकी जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी। वरना जनता के पास सरकार को बदलने के अलावा कोई और चारा नहीं होगा। फिर पंत ने ही हमें फर्स्ट एड किट जांच करने का भी सुझााव दिया। उनका कहना था कि आप तो केवल बसों की हालत पर जा रहे हो यदि बस कहीं खराब हो जाए और उसी समय किसी सवारी की हालत भी खराब हो जाए तो क्या इंतजाम बसों में हैं इसे भी आप देखें। माना ड्राइवर कंडेक्टर मिल कर बस तो जैसे तैसे चलाने योग्य बना देंगे लेकिन उस सवारी का इलाज तो वे भी नहीं कर पाएंगे। सरकार की इस निक्म्मेपन के चलते किसी यात्री को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। कारण ये है कि यहां कि की बसों में फर्स्ट एड किट ही नहीं है।
अब समझते हैं कि फर्स्ट एड किट क्यों है जरूरी
दरअसल कई बार यात्रा के दौरान अचानक ब्रेक लगने या झटका लगने से यात्री के चेहरे या शरीर पर कहीं चोट लगने का अंदेशा बना रहता है ऐसे में यदि खून बहने लगे तो इसके लिए प्रत्येक बस में फर्स्ट एड बॉक्स की सुविधा मुहैया कराई जाती है। इसमें रूई, पट्टी, एंटीसेप्टिक लिक्विड के साथ अन्य उपचार संबंधी मरहम आदि होते हैं, ताकि प्राथमिक उपचार कर चोट से बह रहे खून को रोका जा सके। यात्री को सुरक्षित उपचार केंद्र तक पहुंचा जा सके।
और, क्या है यहां की बसों के हालात :
यदि मसूरी बस अड्डे पर पर्वतीय डिपो की बसों की बात करें तो जो बातें सामने आई वे भी अत्यंत भयावह हैं। दरअसल इन बसों में भी प्राथमिक उपचार के कोई इंतजाम ही नहीं हैं। बताया जाता है कि कुछ एक बस में जरूर दवाएं मौजूद हैं, लेकिन बाकि बसें भगवान भरोसे ही चल रही हैं। जबकि परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की गाइडलाइन साफ कहती है कि बसों की फर्स्ट एड किट में पट्टी, एंटीसेप्टिक, कैंची,टेबलेट,दर्द निवारक व अन्य जीवन रक्षक दवाइयां रखनी होनी चाहिए। वहीं इस संबंध में रोडवेज से जुड़े सूत्रों के अनुसार पिछले अनेक सालों से इन डिब्बों में न तो नई किट नहीं रखी गईं है, न ही उन्हें जांचा ही गया है।
जबकि दूसरी ओर मंडलीय प्रबंधन के सदस्य कहते हैं कि देहरादून डिपो की तकरीबन सभी बसों में फर्स्ट एड किट को रखा जा चुका है। अन्य डिपो की बसों की पड़ताल कराई जा रही है। और जिन बसों में ये किट नहीं है उनमें जल्द लगवा दी जाएगी।
इस बस में दवा तक नहीं—
परिवहन निगम की देहरादून श्रीनगर की ओर जाने वाली बस में फर्स्ट एड बॉक्स तो लगा दिखा, लेकिन इसमें से दवाएं नदारत थी। और साथ ही प्राथमिक उपचार की भी किसी प्रकार की व्यवस्था इसमें नहीं दिखीं। वहीं बॉक्स लंबे समय से खोला नहीं गया था, जिसके चलते इसमें धूल ने अपना कब्जा जमा लिया था।
देहरादून से रुड़की जाने वाली बस यूके 08 पीए 1737 में फर्स्ट एड बॉक्स तो लगा था। लेकिन बॉक्स के अंदर की सभी दवाएं नदारत थी। बॉक्स को देख ऐसा लग रहा था मानों इसे केवल दिखाने के लिए ही लगा रखा है तो इसे देखकर ही लोग संतुष्ट हो जाएं, लेकिन कभी बुरी स्थिति आने पर क्या किया जाएगा, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
देहरादून से मसूरी की ओर जाने वाली बस क्रमांक यूके 07 पीए 4250 में प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था न होने के साथ ही इसमें लगा फर्स्ट एड बॉक्स भी टूटा हुआ था, इसके संबंध मे जो जानकारी समाने आई उसके अनुसार ये लंबे समय से इसी स्थिति में बना हुआ है।
जबकि दूसरी ओर देहरादून से सहारनपुर को जाने वाली यूके 07 पीए 1923 बस में जरूर व्यवस्था उचित देखने को मिली। कारण इसमें फर्स्ट एड बॉक्स में दवाएं तो थीं ही साथ ही इनमें से कोई सी भी दवा एक्सपायर नहीं हुई थी।
इस संबंध में यात्री राजीव नेगी का कहना है कि यहां कि यात्रियों के लिए यहां कि बसों में कोई सुविधाएं नहीं हैं। और न ही सरकार इस ओर ध्यान दे रही है। ऐसे में अब यहां के रहवासियो को ही कुछ बड़ा करना होगा। अन्यथा किसी के साथ भी कोई हादसा हो सकता है।
वहीं दो अन्य यात्रियों आशीष खत्री व पवन रावत का कहना था कि ये सरकार की तो कमी है ही साथ ही अधिकारियों का भी नकारापन है। कुछ नई बसों में जरूर फर्स्ट एड बॉक्स मिल जाता है, लेकिन अधिकतर तो पुरानी ही बसें चल रही हैं। जिनसे या तो ये गायब है या उसे केवल दिखावे के लिए ही लगा रखा है। ऐसे में यदि ये व्यवस्थाएं कमजोर हुई तो न केवल हमारे लिए बल्कि बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए भी ये खतरनाक साबित हो सकता है। जिससे हमारे क्षेत्र का पर्यटन प्रभावित होगा और राज्य के राजस्व में भी कमी देखने को मिलेगी।