उत्तराखंड पर्यटन : ट्रेकिंग, बर्फबारी, प्रकृतिक हरियाली से लेकर धार्मिक पर्यटन तक सबकुछ ​है य​हां

0


भारत में वैसे तो अनेक जगहें पर्यटन की दृष्टि से खास मानी जाती हैं, लेकिन इन्हीं में से एक विशेष स्थान है देवभूमि उत्तराखंड। जो केवल सामान्य पर्यटन (घूमने या गर्मियों में ठंडक) के लिए ही नहीं वरन धार्मिक पर्यटन के लिए भी अत्यंत विशिष्ठ है। दरअसल उत्तराखंड एक छोटा सा मुख्य रूप से पर्वतीय राज्य है, लम्बे जनसंघर्षों के बाद जिसकी स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई थी. उत्तराखंड के निर्माण के समय इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया था कि उसे एक बड़े पर्यटन राज्य के रूप में विकसित किया जाएगा.

उत्तराखंड की पर्यटन नीति में पर्यटन का अर्थ यूँ बताया गया है – “पर्यटन से आधुनिक समय में सभी प्रकार के पर्यटन जैसे धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, तीर्थाटन, साहसिक पर्यटन, खेल पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन, हेली पर्यटन, पारिस्थिकीय पर्यटन, फ़िल्म पर्यटन एवं वन्य जीवन पर्यटन आदि अभिप्रेत हैं.”

ऐसे में आज हम आपको उत्तराखंड के कुछ विशेष पर्यटन स्थलों के बारे में बता रहे हैं।

1. रालम ग्लेशियर का ट्रैक : उत्तराखंड के सीमान्त ज़िले पिथौरागढ़ के मुनस्यारी इलाक़े में रालम नाम का ग्लेशियर है. साहसिक पर्यटन के दीवानों के बीच इस ग्लेशियर का ट्रैक बहुत विशिष्ट और मुश्किल माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों से राज्य के सुदूरतम क्षेत्रों को लगातार सड़क से जोड़ा जा रहा है जिसके चलते बहुत सारे ग्लेशियरों तक जाने के रास्ते बहुत आसान हो गए हैं.

रालम ग्लेशियर का ट्रैक उन कुछ दुर्लभ रास्तों से होकर गुज़रता है जहां गाड़ियां नहीं पहुंचतीं. यह रास्ता अब भी वैसा ही है जैसा बीस-पच्चीस साल पहले हुआ करता था.

मिसाल के तौर पर आप रास्ते में स्थित मलझाली नाम की जगह पर पहुंचें तो वहां बनाई गईं सरकारी अल्पाइन हट्स आपको उतनी ही गन्दी मिलेंगी जितनी वे हमेशा रही हैं – उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है, उनके भीतर मवेशी गोबर कर जाते हैं, उनकी खिड़कियाँ टूटी हुई हैं और टॉयलेट्स में अब भी पानी का कनेक्शन नहीं है. यह अनुभव इस वर्ष रालम ग्लेशियर के ट्रैक पर गए, अल्मोड़ा में रहने वाले मेरे अनुभवी ट्रेकर-फ़ोटोग्राफ़र दोस्तों जयमित्र बिष्ट और भरत शाह का है.

साहसिक पर्यटन और ट्रैकिंग के क्षेत्र में बागेश्वर ज़िले के पिंडारी ग्लेशियर को पिछले अनेक दशकों से यात्रियों के बीच सबसे लोकप्रिय गंतव्य का दर्जा हासिल है. साल 2022 में उत्तराखंड की सरकार ने पिंडारी ग्लेशियर को ट्रैक ऑफ़ द ईयर घोषित किया था.

आज से कोई 12 साल पहले तक पिंडारी का पैदल रास्ता लोहारखेत, धाकुड़ी और खाती जैसी जगहों से होकर जाता था. फिर उस पर विकास की नज़र पड़ गई और सरकार ने कुर्मी और खरकिया होते हुए वहां सड़क बननी शुरू कर दी।

2. मुनस्यारी हिल स्टेशन, देश का स्वीजरलैंड या देश का मिनी कश्मीर : मुनस्यारी पर्यटन स्थल भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित बेहद खूबसूरत हिल्स स्टेशन हैं जोकि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। मुनस्यारी भारत, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से लगा हुआ क्षेत्र है जोकि चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। मुनस्यारी इतनी सुन्दर जगह है कि इसे देश का स्वीजरलैंड या उत्तराखंड के ‘छोटे कश्मीर’ के नाम से भी जाना जाता है। मुनस्यारी बर्फ से ढके पहाड़ों का सुन्दर पर्वतीय स्थल है जोकि पिथौरागढ़ जिले में सबसे तेजी से बढ़ते पर्यटन स्थलों में से एक बन गया है। मुनस्यारी अपनी कुदरती प्राकृतिक सौन्दर्यता के कारण बहुत लोकप्रिय स्थान बन गया है। मुनस्‍यारी के सामने विशाल हिमालय पर्वत श्रंखला का विश्‍व प्रसिद्ध पंचचूली पर्वत (हिमालय की पांच चोटियां) हैं जो इसके आकर्षण का केंद्र बने हुए है। प्रकृति प्रेमियों के लिए मुनस्यारी एक आदर्श स्थान के रूप में स्थित है। पर्यटक यहाँ पिकनिक मनाने आते है और साथ-साथ ट्रेकिंग का आनंद भी पाते है।

मुनस्यारी बहुत ही खूबसूरत क्षेत्र है जो कि पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। मुनस्यारी उत्तराखण्ड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन हैं जोकि उत्तराखंड पर्यटन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता हैं। मुनस्यारी में आपको घूमने के लिए कई ऐसे पर्यटक स्थल मिलेंगे जहां घूमकर आप अनूठे आनंद का अनुभव करेंगे। प्रकृति की गोद मुनस्यारी ऊँची पहाड़ियों और सुन्दर दृश्यों के लिए जाना जाता है। मुनस्यारी में आने वाले पर्यटक इन स्थानों की यात्रा जरूर करते है।

3. उत्तराखंड का पर्यटन स्थल औली : उत्तराखंड का पर्यटन स्थल औली अपने यहां सेब के बाग, पुराने ओक और देवदार के पेड़ों के साथ साथ बिंदीदार औली में प्राकृतिक सुंदरता का धनी पर्यटक स्थल हैं। औली में स्कीइंग के अलावा आप गढ़वाल हिमालय की पहाड़ियों में भी कई ट्रेक के लिए जा सकते है। यहां के बर्फ से ढके पहाड़ों का खूबसूरत नजारा देखकर मंत्रमुग्ध होने का अनुभव भी आप ले सकते है। समुद्र तल से 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित औली एक मन्त्रमुग्ध कर देने वाला पर्यटन स्थल हैं।

4. उत्तराखंड का दर्शनीय स्थल हरिद्वार : भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में शुमार हरिद्वार उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में गंगा नदी के तट पर स्थित एक खूबसूरत प्राचीन शहर है। हरिद्वार शहर के आश्रमों, मंदिरों और संकरी गलियों से संपन्न शहर है। लाखों की संख्या में भक्त पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने आते हैं। प्रत्येक बारह वर्षों में एक बारहरिद्वार में विश्व प्रसिद्ध कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता हैं। कुम्भ के मेले में शामिल होने और उसका आनंद लेने के लिए पूरे भारत वर्ष से पर्यटक आते हैं। कुम्भ का मेला हरिद्वार के अलावा भारत के मात्र तीन शहर प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में लगता हैं।

5. ऋषिकेश : उत्तराखंड राज्य में ही ऋषिकेश पर्यटन स्थल भी स्थित हैं और यह गंगा और चंद्रभागा के अभिसरण के साथ साथ हिमालय की तलहटी में कई प्राचीन और भव्य मंदिरों के लिए दुनिया भर में जाना जाता हैं। इसके अलावा यह जगह लौकप्रिय कैफे, योग आश्रम और साहसिक खेलों का केंद्र भी है। ऋषिकेश आध्यात्मिक और एड्रेनालाईन पंपिंग का एक अनौखा है। पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड लौकप्रिय पर्यटक स्थल ऋषिकेश को भारत के एडवेंचर स्पोर्ट्स के केंद्र के रूप में भी विकसित किया गया है। क्योंकि यहां व्हाइट वाटर राफ्टिंग, फ्लाइंग फॉक्स, माउंटेन बाइकिंग, बंजी जंपिंग आदि विकल्पों की शानदार भीड़ देखने को मिलती हैं।

: इसके साथ ही उत्तराखंड राज्य में कई हिल स्टेशन हैं। जैसे – अल्मोड़ा, कौसानी, भीमताल, मसूरी, नैनीताल, धनोल्टी, लैंसडाउन, सटल और रानीखेत हैं। जोकि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। गर्मियों में ठंडा रहने की वजह और अन्य क्रियाकलापों के लिए भी इन हिल स्टेशन का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। पर्यटक गर्मी के मौसम और छुट्टियां बिताने के लिए यहां भारी संख्या में आते हैं।

प्रकृति प्रेमी, पर्यटन…

  1. राजा जी पार्क (Rajaji National Park, Dehradun): राजाजी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड के देहरादून से 23 किमी की दूरी पर स्थित है। यह देहरादून (उत्तराखंड) के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। 1983 से पहले इस क्षेत्र में फैले जंगलों में तीन अभयारण्य थे- राजाजी,मोतीचूर और चिल्ला। 1983 में इन तीनों को मिला दिया गया। महान स्वतंत्रता सेनानी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाम पर इसका नाम राजाजी राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। 830 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला राजाजी राष्ट्रीय उद्यान अपने यहाँ पाए जाने वाले हाथियों की संख्या के लिए जाना जाता है। इ॥सके अलावा राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में हिरन, चीते, सांभर और मोर भी पाए जाते हैं। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की 315 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ पर एक पेड़ ऐसा भी पाया गया जो अपने साथ 20 पेड़ जोड़ चुका है एक के बाद एक पेड़ ऊपर से नीचे की और ज़मीन पे खड़े हो गये है यह एक ही पेड़ का 21 पेड़ हो चुके हैं।

2- जिम कार्बेट पार्क Jim Corbett National Park : जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है और 1936 में लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैंली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था। यह उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के रामनगर नगर के पास स्थित है और इसका नाम जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया था जिन्होंने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला यह पहला पार्क था। यह एक गौरवशाली पशु विहार है। यह रामगंगा की पातलीदून घाटी में 1318.54 वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ है जिसके अंतर्गत 821.99 वर्ग किलोमीटर का जिम कॉर्बेट व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है।

कॉर्बेट एक लंबे समय के लिए पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए अड्डा रहा है। कोर्बेट टाइगर रिजर्व के चयनित क्षेत्रों में ही पर्यटन गतिविधि को अनुमति दी जाती है ताकि लोगों को इसके शानदार परिदृश्य और विविध वन्यजीव देखने का मौका मिले।

 

धार्मिक पर्यटन…

1. बद्रीनाथ – Badrinath Tourist Place In Uttarakhand In Hindi : उत्तराखंड का पर्यटन स्थल बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीचों बीच स्थित है, यह हिंदुओं के चार तीर्थों में से एक है। बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित एक तीर्थस्थल है जो प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्रियों की मेजबानी करता है। बद्रीनाथ धाम का उल्लेख विभिन्न वेदों में भी किया गया है। इसके अलावा यहां नीलकंठ पर्वत भी मौजूद है।

 

2. केदारनाथ Kedarnath Tourist Place In Uttarakhand In Hindi : उत्तराखंड का पर्यटन स्थल केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह अपने प्राचीन शिव मंदिर, तीर्थ स्थल, हिमालय पर्वतमाला और मन्त्र मुग्ध कर देने वाले परीदृश्यों के लिए लोकप्रिय है। केदारनाथ मंदिर चोराबाड़ी ग्लेशियर और केदारनाथ की चोटियों से घिरा हुआ है। केदारनाथ में बर्फ से ढकी चोटियों के साथ-साथ अनगिनत पर्वतमालाएं है।

3. गंगोत्रीGangotri Tourist Place In Uttarakhand In Hindi : उत्तराखंड का दर्शनीय स्थल गंगोत्री उत्तरकाशी में स्थित एक तीर्थस्थल हैं। यहां आने वाले पर्यटकों की लम्बी कतार लगी रहती हैं। पौराणिक कहानियों से पता चलता हैं कि सदियों पहले राजा भागीरथ की तपस्या के बाद देवी गंगा ने उनके पूर्वजों के पापों को धोने के लिए खुद को एक नदी के रूप में प्रवाहित किया। लेकिन ऊंचाई से गिरते हुए जल के वेग को कम करने के लिए भगवान शिव ने आपनी जटाओं में उस जल को समा लिया। गंगा नदी के उद्गम स्थान को गौ मुख व जब यहां से निकलती हैं तो यह भागीरथी के नाम से जानी जातीं हैं।

4. यमुनोत्रीYamunotri Tourist Place In Hindi : उत्तराखंड का पर्यटन स्थल यमुनोत्री यमुना नदी की उत्पत्ति के रूप में श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष पर्यटन स्थल बन चुका हैं और यह छोटे चार धाम में से एक हैं। 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित योमुनोत्री धाम गढ़वाल हिमालय की गोद में बसा हुआ हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना यमराज यानि मृत्यु के देवता की बहन हैं। मान्यता है कि यमुना में स्नान करने से जीवन के अंतिम समय में मृत्यु दर्द रहित हो सकती है।

5. जागेश्वर धाम – Jageswer Dham: जागेश्वर धाम उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यह मंदिर कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दूरी पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है। जागेश्वर धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि मंदिरों की एक नगरी है। जागेश्वर मंदिर में 124 मंदिरों का समूह है। जिसमे 4-5 मंदिर प्रमुख है जिनमे विधि के अनुसार पूजा होती है। यह मंदिर नगरी समुद्रतल से लगभग 1870 मीटर की उचाई पर स्थित है। दारुकवन में देवदार के जंगल के बीच मृत्युंजय मंदिर में स्थित शिवलिंग को ‘नागेश जागेश दारुकवने’ आधार पर शकराचार्य जी द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिग माना गया है।

शिव पुराण में बताया गया है कि सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग की स्थापना जागेश्वर में हुई थी। अर्थात सबसे पहले शिवलिंग पूजा यहीं से हुई थी। इतिहासकारों के अनुसार इसकी स्थापना मूलतः उत्तराखंड के नाग शासकों ने की थी। उन्होंने यहां एक विशाल यज्ञ करवाया था, फिर उसके बाद भगवान् भोलेनाथ के इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। इसीलिए इसे यज्ञेश्वर कहा गया जो कालांतर में जागेश्वर हो गया। जागेश्वर के नामकरण के सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि यहाँ भगवान् शिव ने योगेश्वर रूप में तपस्या की थी। इसलिए इसका नाम योगेश्वर और बाद में जागेश्वर हो गया। इसके अलावा किन्तु स्कन्द पुराण के मानसखंड में इसे ‘जागीश्वर’ कहा गया है।

यहाँ के मंदिर समूहों में एक मंदिर है ,जिसका नाम है दंडेश्वर मंदिर। इस मंदिर में कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है। लेकिन यहाँ एक प्राकृतिक शिला है। मान्यता है कि कामदेव ने इस शिला पर बैठकर भगवान् भोलेनाथ की तपस्या भंग करने का दुस्साहस किया था। और भगवान् शिव के कोप का भाजन बने थे।

6. पाताल भूवनेश्वर – Patal Bhuvaneshwar : पाताल भुवनेश्वर एक गुफा मंदिर है जोकि भारत में उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक चूना पत्थर की गुफा है। यह गुफा भुवनेश्वर गांव में स्थित है। यह भव्य और पर्यटन गुफा अपने आकर्षक गुणों के कारण भक्तो की आस्था का केंद्र बन गई है। ऐसा माना जाता है की यह गुफा भगवान शिव और तैंतीस कोटी देवी देवताओं को हिन्दू संस्कृति में समाहित करती है। पाताल भुवनेश्वर गुफा में एक संकीर्ण सुरंग जैसा उद्घाटन है, जो यहां की कई गुफाओं की ओर जाता है।

पाताल भुवनेस्वर गुफा मंदिर पूरी तरह से बिजली से रोशन है। पानी के प्रवाह से निर्मित पाताल भुवनेश्वर केवल एक गुफा मंदिर नहीं है। बल्कि गुफाओं के भीतर गुफाओं की एक श्रृंखला के रूप में जानी जाती है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है।

7. कटारमल सूर्य मंदिर – Katarmal Sun Temple Almora: कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर है। यह पूर्वाभिमुखी है तथा उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में स्थित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है। मान्यता के अनुसार यहां पर कालनेमि नामक राक्षस का आतंक था, तो यहां के लोगों ने भगवान सूर्य का आह्वान किया. भगवान सूर्य लोगों की रक्षा के लिए बरगद में विराजमान हुए. तब से उन्हें यहां बड़ आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. कटारमल सूर्य मंदिर में स्थापित भगवान बड़ आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है।

8. कसार देवी मंदिरKasar Devi Temple: अल्मोड़ा में​ स्थित कसार देवी का मंदिर वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के बीच खासा लोकप्रिय है. इस मंदिर का एक ऐसा रहस्य है जो इसे दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. कसार देवी मंदिर यूके यानी उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर बसे कसार देवी गांव में है. समुद्र तल से 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर से हवाबाग घाटी और अल्मोड़ा शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है. यहां हर साल हज़ारों पर्यटक दर्शन करने आते हैं. इसमें कसार देवी की प्रतिमा है जिन्हें मां दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी माना जाता है. यहां अखंड ज्योति है जो वर्षों से प्रज्वलित है. मंदिर परिसर में एक हवन कुंड भी है जिसमें लकड़ियां जलती रहती हैं. कहा जाता है कि इसकी भभूत से लोगों की कुछ परेशानियां दूर हो जाती हैं. इतिहास की बात करें तो इस मंदिर में स्वामी विवेकानंद भी आ चुके हैं.

अल्मोड़ा पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये भारत की एक एकलौती ऐसी जगह है, जहां चुंबकीय शक्तियां मौजूद हैं. मंदिर के आस-पास ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां चुंबकीय शक्ति देखी गई है. मंदिर परिसर में शरीर को अपनी ओर खींचने वाली शक्तियां मौजूद हैं. ऐसा क्यों है इसका पता लगाने नासा के वैज्ञानिक भी आए थे, लेकिन उनको भी इसका रहस्य पता नहीं लगा सके।

9. पूर्णागिरी मंदिर – Purnagiri Temple : पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के शहर टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह चतुर् आदि शक्तिपीठ में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं।

इसके बारे में कालिकापुराण में विस्तारित है। जिसमें लिखा है, ओड्राख्यं प्रथमं पीठं द्वितीयं जालशैलकम् । तृतीयं पूर्णपीठं तु कामरूपं चतुर्थकम् ।।

दक्षिणे पूर्णशैलं तु तथा पूर्णेश्वरी शिवाम् ।
पूर्णनाथं महानाथं सरोजामथ चण्डिकाम् ।।

अर्थात:- ओडपीठ, प्रथम, जालशैल (जालन्धरपीठ) द्वितीय, पूर्णगिरिपीठ तृतीय तथा कामरूपपीठ चतुर्थ देवी का पीठ है । कामाख्या यन्त्र के दक्षिण में पूर्णशैल पर देवी पूर्णेश्वरी और महादेव पूर्णनाथ, सरोजा (लक्ष्मी), चण्डिका, शान्तस्वभाववाली दमनी देवी का साधक वहीं पूजन करे । वाराही तन्त्र में भी उसकी पूजा यन्त्र मिलता है।

 

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *