#मित्र सूत्र: यह समान गुणधर्म का विषय
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात दोस्ती की…
यह समान गुणधर्म का विषय
दोस्ती सब से नहीं होती। सब से होना भी नहीं चाहिए। यह भी जन्म, जाति, आयु , भाषा, लिंग के बंधन से परे का रिश्ता है। जब तक दो लोगों की समान फ्रीक्वेंसी मैच नहीं होती तब तक उनमें मित्र भाव का अंकुरण नहीं फूटता। समान गुणधर्म के लोगों के बीच सहज रिश्ते बन जाते हैं। जैसे कहते हैं न कि ‘ चोर – चोर मौसेरे भाई ‘ ठीक उसी तरह जब दो गलत लोग आपस में मिल जाते हैं तो उनके बीच स्वाभाविक दोस्ती हो जाएगी। दो भले लोगों के बीच भी दोस्ती होना सहज प्रक्रिया है। किंतु यदि एक सज्जन और एक दुर्जन मिलें तो फिर उनके बीच दोस्ती एक तो होगी नहीं यदि अज्ञानतावश हो भी गई तो लंबी चलेगी नहीं। जैसे पानी में तेल अतरा आया हो। कहें रहीम कैसे निभे ‘ केर बेर को संग ‘
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जहां तक मैंने समझा और जाना है कि दोस्ती के रिश्ते में किसी भी प्रकार की स्वार्थ परायणा नहीं होती । दोस्त वह होता है जो आपके बगैर कहे ही आपके मन की व्यथा – कथा को भांप ले। आपकी सहायता को बगैर प्रश्न – प्रति प्रश्न तैयार खड़ा हो जाए। अवसरवादिता से परे हो। गोस्वामी तुलसीदास जी ने आपातकाल में जिन चार लोगों की परीक्षा की बात कही है उसमें एक मित्र भी तो है। किंतु कुछ ऐसे भी जो आपके संकट में चूहे की तरह कूदकर भाग खड़े होते हैं। मित्र का चुनाव हम स्वयं अपने विवेक से करते हैं, हालांकि यहां भी भावनाओं की प्रबलता में गच्चा खा जाते हैं। सबकी प्रवृत्ति एक जैसी तो होती नहीं?
रामायण, महाभारत में दोस्ती की अनगिनत मिसाल हैं। श्रीराम की सुग्रीव की मित्रता तो हुई किंतु बालि से नहीं, विभीषण से हुई किंतु रावण से नहीं । वहीं महाभारत में दुर्योधन और कर्ण के बीच मित्रता होती है यह सब सम गुणधर्म के लोग ही तो थे। दो पढ़ाकू, दो लड़ाकू, दो खिलाड़ी, दो बदमाश, दो धूर्त इन सभी के बीच मित्रता झटपट होती है। हालांकि धूर्त मित्र से कहीं अधिक ठीक होते हैं बुद्धिमान शत्रु।
सूत्र यह है कि मित्रता बहुत सोच विचार कर कीजिए। चाहे आभासी दुनिया हो या भौतिक दुनिया। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं।
शुभ मंगल
# मित्र सूत्र