Congress New Headquarter: 24 अकबर रोड अब कांग्रेस मुख्यालय नहीं
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अब ये है नया ठिकाना
Congress New Headquarter: इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी के राजनीतिक पुनरुत्थान, राजीव गांधी को लोकसभा में 411 सीटों के ऐतिहासिक समर्थन से लेकर 2014 के चुनाव में मात्र 44 सीटों के शर्मनाक प्रदर्शन का गवाह बना कांग्रेस मुख्यालय ’24, अकबर रोड’ बंग्ला इतिहास बन जाएगा। पिछले 47 साल का इतिहास समेटे इस बंग्ले को छोड़कर कांग्रेस मुख्यालय बुधवार को 9, कोटला रोड स्थित इंदिरा भवन में शिफ्ट होगा। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी सुबह 10 बजे नए भवन का उद्घाटन करेंगी।
इंदिरा गांधी ने कहा था – यह भवन प्रेरित करेगा
1 जनवरी 1978 की सर्द सुबह जब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के.ब्रह्मानंद रेड्डी ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित किया तो उस समय सांसद जी.वेंकटस्वामी ने खुद को आवंटित आवास 24, अकबर रोड को इंदिरा समर्थकों के लिए खोल दिया। इंदिरा गांधी ने उसी दिन अपने 20 समर्थकों के साथ इस भवन में प्रवेश किया और यह बंग्ला मुख्यालय के रूप में कांग्रेस के उतार-चढ़ाव का संगी बन गया। 1980 के मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता वापसी की तो समर्थकों की मांग के बावजूद कांग्रेस ने पुराने भवन पर दावा नहीं किया। तब इंदिरा गांधी ने कहा था- मैंने दो बार पार्टी को शून्य से शिखर पर पहुंचाया है, यह नया परिसर कांग्रेसजनों को दशकों तक प्रेरित करेगा।
सात अध्यक्ष देखे, अपमान से सम्मान तक भी
24, अकबर रोड ने कांग्रेस के सात अध्यक्ष देखे। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यहीं से पार्टी चलाई। इस भवन ने कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को जबरन उठाकर बाहर करने का नजारा देखा तो सोनिया गांधी के रूप में पार्टी की तारणहार का स्वागत करने का भी गवाह बना। इसी भवन से पार्टी और देश पर पांच साल राज करने वाले प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को निधन के बाद यहां रखने की इजाजत नहीं मिली। गर्त में जा रही पार्टी इसी भवन में बनी रणनीति से सोनिया के नेतृत्व में फिर सत्तासीन हुई तो सबसे खराब प्रदर्शन भी देखा।
वायसराय के करीबी, नाेबल विजेता का भी आशियाना
लुटियन जोन के इस बंग्ले में कभी सर रेजिनाल्ड मैक्सवेल रहा करते थे जो वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो की कार्यकारी परिषद के सदस्य थे। यह बंग्ला नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की का आशियाना भी रहा है। अपने किशोर जीवन में 1961 में सू की अपनी मां और भारत में म्यांमार की राजदूत के साथ यहां रहती थीं। तब इस बंग्ले को बर्मा हाउस कहा जाता था।
100 साल पुराना पेड़ गिरा तो अपशकुन की चर्चा
मई 1999 में आए आंधी-तूफान में इस बंग्ले में करीब 100 साल पुराना बरगद का पेड़ धराशायी हो गया था। इससे दबकर एक बच्चे की मौत भी हो गई थी। थोड़े से तूफान में इस पेड़ से गिरने पर पार्टी नेताओं में अपशकुन की चर्चा रही। उस समय पार्टी सत्ता से बाहर थी लेकिन पांच साल बाद 2004 के आम चुनाव में इसी भवन से पार्टी ने फिर सत्ता पाई।