अनंत में लीन सियाराम बाबा : 69 साल पहले महाराष्ट्र से आए थे भट्यान गांव
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स्मृति शेष…
मध्यप्रदेश में निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी के पवित्र पर्व पर देह त्याग दी। बुधवार सुबह छह बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
बाबा के अनुयायी निमाड़ और आदिवासी अंचल में बड़ी संख्या में हैं। उनकी उम्र को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जाते रहे हैं। कोई उनकी उम्र 100 साल बताता है तो कोई 115 साल, लेकिन भट्यान गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1955 में बाबा महाराष्ट्र से भट्यान गांव आए थे। तब वे युवा थे और उनकी उम्र 25 से 30 साल रही होगो। 69 साल से वे गांव में रहे, वे गांव छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। संभवत: बाबा दूसरे संतों के साथ नर्मदा परिक्रमा के लिए आए थे और नर्मदा किनारे का यह गांव उन्हें पसंद आ गया। फिर उन्होंने यहां एक कुटिया बनाकर रहने का निश्चय किया। उनके लिए पांच घरों से खाना आता था, जिसे वे एक पात्र में मिलाकर चूरकर खाते थे। उनकी दिनचर्या में सुबह उठकर भगवान का राम नाम जपना और नर्मदा नदी में स्नान करना शामिल था। दिनभर वे आश्रम में रामचरित मानस पढ़ते थे और शाम को भक्तों के साथ भजन गाते थे। बाबा ने वर्षों तक मौन धारण किया था और एक पैर पर खड़े होकर तपस्या भी की थी।
संत समाज और लाखों श्रद्धालुओं में छाया शोक
मराठी जानते थे सियाराम बाबा…बाबा के अनुयायी बताते हैं कि बाबा का जन्म महाराष्ट्र में मुंबई के आसपास के किसी ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था। उन्हें मराठी भाषा अच्छी तरह आती थी। इसके अलावा वे संस्कृत भाषा भी जानते थे। बाबा ने गांव में राम मंदिर का निर्माण कराया था और फिर नदी किनारे एक आश्रम बनाया। बीते 20 साल में सियाराम बाबा के भक्तों की संख्या काफी बढ़ गईं थी। हर शनिवार और रविवार को आश्रम में हजारों भक्तों की भीड़ लगती थी। त्योहार के समय बाबा के आश्रम में भंडार भी होता था।
भक्त करे थे जाप : बीते तीन दिन से आश्रम में एकत्र भक्त उनके स्वास्थ्य के लिए जाप कर रहे थे और भजन गा रहे थे। मुख्यमंत्री डों. मोहन यादव के निर्देश के बाद डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखे हुए थे। बुधवार शाम को सीएम यादव बाबा से मुलाकात करने आने वाले थे। बाबा की अंत्योष्टि के लिए सेवादारों ने चंदन को लकड़ी की व्यवस्था की थी।
श्रद्धालुओं से लेते थे सिर्फ 10 रुपये ... सियाराम बाबा ने 12 साल तक मौन भी धारण कर रखा था। जो भक्त आश्रम में उनसे मिलने आता है और ज्यादा दान देना चाहता थे तो बे इनकार कर देते थे। वे सिर्फ दस रुपये का नोट ही लेते थे। उस धनराशि का उपयोग भी ये आश्रम से जुड़े कामों में लगा देते थे। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की थी और बारह वर्षों तक मौन रहकर अपनों साधना पूरी की थी। मौन ब्रत तोड़ने के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते है।
हाथों से दीपक जला देते थे, केतली में कभी खत्म नहीं होती थी चाय
मां नर्मदा के अनन्य भक्त सियाराम बाबा के दुनियाभर में लाखों भक्त हैं। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते हैं। बाबा का चाय और केतली वाला किस्सा काफी प्रसिद्ध है। भक्तों का कहना है कि बाबा जब भी लोगों को चाय देते हैं तो उनकी केतली की चाय कभी खत्म नहीं होती। कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर बाबा के चमत्कार का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे बिना माचिस के ही दीपक जलाते दिखाई दे रहे थे। बाबा को लेकर यह बात भी प्रचलित है कि बाबा लगातार 21 घंटों तक रामायण पढ़ते हैं। हैरानी की बात ये है कि इन चमत्कारी संत की उम्र 100 साल से भी ज्यादा थी, लेकिन फिर भी बिना चश्मे के बाबा 21 घंटों तक रामायण का याठ करते थे।
कड़ाके की ठंड में भी एक लंगोट में रहे
चाहे कड़ाके को सर्दी हो या फिर झुलसा देने वालों गर्मी बाबा सियाराम हमेशा सिर्फ एक लंगोट में हो रहते थे। उनके अनुयायियों का कहना है कि उन्होंने कभी भी बाबा को लंगोट के अलावा किसी और कपड़े में नहीं देखा। तपस्या और योग साधना के दम पर बाबा ने खुद को हर मौसम के अनुकूल ढाल लिया था। एक शतक पार कर चुके बाबा किसी पर निर्भर नहीं थे। वे अपने सभी कार्य खुद करते थे।
अपूरणीय क्षति : सीएम
— भटियान गांव में बाबा की समाधि बनाने की घोषणा
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भट॒टयान आश्रम पहुंचकर कर सियाराम बाबा के चरणों में माथा टेका और बाबा की पार्थिव देह पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। सीएम ने कहा कि बाबा का निधन प्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बाबा की समाधि व क्षेत्र को पवित्र और पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की। डॉ. यादव के साथ भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की। बाबा कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के निर्देश पर खरगोन जिला शासन ने बाबा के उपचार की सभी व्यवस्था की थी। बाबा की इच्छा के अनुरूप भट्टयान आश्रम में ही चिकित्सकों की टीम बाबा के स्वास्थ्य पर नजर रखे हुए थी।